Art by Ambs
December 25, 2009
December 23, 2009
Indira Gandhi - As in Cartoonist Shankar's Imagination
December 22, 2009
AVATAR
Take my word, coz I luved the whole Pandora experience..
A beautiful world and a spellbound imagination...
And apart from the visual treat, I should say - a very brave attempt to show us how green our mother nature should have been years ago...
And an eye-opener to all human beings,
And here comes the final one...also, my v.first "Vector Design"!
The First Professional Venture
My First Logo Design!
The very first professional logo i created for a contest...
And for the same reason, very close to my heart!!
This one was for the Technology Solution Group(TSG)...However, by the time i could make the logo ready -
stealing time out of work, the end date was crossed!! :)
A Newspaper Cartoon Recreated
December 17, 2009
वक़्त का नया डोर
रंगीली दुनिया में मज़े लिए,
बढ चले, वक़्त के नए डोर में|
हर इक मोड़ पर ज़िन्दगी की मगर,
यादें चीर आती है, दिल ही दिल में|
तमन्ना है मुस्कुराते बढ चलने का,
बिना डगमगाए, खुशियाँ बिखेरने का|
इस जहान की रंगीन अंधकार में,
गुम हुए बिना, अपना अस्तित्व बरकरार रखने का|
दिल में डुबकियां ले रही सवालों में,
डूबे बिना चलते रहना है|
यादों के साए से बस -
थोड़ी छाँव चुरा ले जाना है|
आवाज़ देना है बार-बार,
दिल को समझाते रहना है कि -
विश्वास खोना नहीं कभी,
अपने आपको हरदम संभालना है|
अपने दिल की सच्चाई को तुमने पहचाना है|
आत्मा की आवाज़ से,
उस सच्चाई को अपना शक्ति बनाना है|
याद रखना कि जीवन नहीं हमेशा खुशियों का मेला|
मिलाकर थोड़े गम की परछाई, बनती वो इक पूर्ण बेला|
बढ चले, वक़्त के नए डोर में|
हर इक मोड़ पर ज़िन्दगी की मगर,
यादें चीर आती है, दिल ही दिल में|
तमन्ना है मुस्कुराते बढ चलने का,
बिना डगमगाए, खुशियाँ बिखेरने का|
इस जहान की रंगीन अंधकार में,
गुम हुए बिना, अपना अस्तित्व बरकरार रखने का|
दिल में डुबकियां ले रही सवालों में,
डूबे बिना चलते रहना है|
यादों के साए से बस -
थोड़ी छाँव चुरा ले जाना है|
आवाज़ देना है बार-बार,
दिल को समझाते रहना है कि -
विश्वास खोना नहीं कभी,
अपने आपको हरदम संभालना है|
अपने दिल की सच्चाई को तुमने पहचाना है|
आत्मा की आवाज़ से,
उस सच्चाई को अपना शक्ति बनाना है|
याद रखना कि जीवन नहीं हमेशा खुशियों का मेला|
मिलाकर थोड़े गम की परछाई, बनती वो इक पूर्ण बेला|
December 16, 2009
Solitude
My best friend all life!!!
You gave me company to play,
In the childhood when lonely, my mind used to stray.
You give me the wisdom to make the right choice,
Letting me listen to my heart’s own voice.
You give me strength in all tough moments,
Infusing peace to a mind that fills up with turbulence.
You fill me with hope to move on and on,
When life swirl my world, making all dreams drown.
You make me look upon the beauty within me,
When the whole world seems like my enemy.
Without you, the meaning in life seems to elude,
After all you are my very own Solitude,
Enriching every moment with joy so rife,
Truly, you are my best friend all life!!!
Written on - May 17, 2009
You gave me company to play,
In the childhood when lonely, my mind used to stray.
You give me the wisdom to make the right choice,
Letting me listen to my heart’s own voice.
You give me strength in all tough moments,
Infusing peace to a mind that fills up with turbulence.
You fill me with hope to move on and on,
When life swirl my world, making all dreams drown.
You make me look upon the beauty within me,
When the whole world seems like my enemy.
Without you, the meaning in life seems to elude,
After all you are my very own Solitude,
Enriching every moment with joy so rife,
Truly, you are my best friend all life!!!
Written on - May 17, 2009
The Pebbles Of Life
Spread across like a seamless ocean,
Sometimes rough, else a velvety cushion,
Through the roads of deep emotions,
Our journey goes on and on,
Through the pebbles of life!!!
How I wish I were a child again,
To be able to love and be loved, without pain.
Pain - of the worldly sorrows,
Pain - of the helplessness that burrows.
Seldom do we realize when we are a child,
How we will miss those treasured times all the while,
When our journey goes on and on,
Through the pebbles of life!!
As time moves forward with lightening speed,
Thoughts traverses the memory lane faster,
As in some emotional need.
Flashes the moments that’s close to heart,
With a spark of memories that tough to depart.
Hanging on to the dwindling twines of passed times,
Goes the journey on & on,
Through the pebbles of life!!
Written on - April 19, 2009
Sometimes rough, else a velvety cushion,
Through the roads of deep emotions,
Our journey goes on and on,
Through the pebbles of life!!!
How I wish I were a child again,
To be able to love and be loved, without pain.
Pain - of the worldly sorrows,
Pain - of the helplessness that burrows.
Seldom do we realize when we are a child,
How we will miss those treasured times all the while,
When our journey goes on and on,
Through the pebbles of life!!
As time moves forward with lightening speed,
Thoughts traverses the memory lane faster,
As in some emotional need.
Flashes the moments that’s close to heart,
With a spark of memories that tough to depart.
Hanging on to the dwindling twines of passed times,
Goes the journey on & on,
Through the pebbles of life!!
Written on - April 19, 2009
बलिदान
मातृभूमि की छाती पर,
वीरों के इस धरती पर,
न जाने कितनी ही जान -
दे चुके है, बलिदान|
काँटों भरी राह से चलकर,
कदम-कदम पर जान लुटाकर,
भारतमां को मुक्त कराने,
न जाने कितने ही बेटों ने,
फांसी को फूलों का हार मान,
दिया धरती माँ को सम्मान|
जय हो, बेटों - तुम्हारा बलिदान|
मातृभूमि की रक्षा हेतु,
मातृहृदय कितने ही रोये -
कितने ही बेटों को खोये|
फिर भी उनके आँखों पर,
आँसू के उन बूंदों पर,
झलके है, अजब सा अभिमान,
जय हो माँओं, तुम्हारा बलिदान|
सातों फेरों के कसम को तोड़,
नन्ही जानों को आँगन में छोड़,
दुश्मनों के ध्वंसक घमंड को तोड़,
जवानी को पलभर में लुटाकर,
साघांतिक इस खेल में सीना तानकर,
खड़े है वीर, अपना बढ़ाकर शान|
जय हो वीरों, तुम्हारा बलिदान|
खून भरी मांगें कितने ही,
बिखर गयी इन राहों में,
तनहाई की तमस में कितने,
खो चुके है इस मिट्टी में|
सकल विवशतावों से लड़कर,
बढ़ाई है उन वीरों की शान,
जय हो नारी, तुम्हारा बलिदान|
ज़िन्दगी की नुकीली पगतल पे,
चलते जाना नहीं आसान,
किसी मोड़ पर, तुम्हें भी जीवन के -
देना होगा अपना बलिदान!
Written in 2004
वीरों के इस धरती पर,
न जाने कितनी ही जान -
दे चुके है, बलिदान|
काँटों भरी राह से चलकर,
कदम-कदम पर जान लुटाकर,
भारतमां को मुक्त कराने,
न जाने कितने ही बेटों ने,
फांसी को फूलों का हार मान,
दिया धरती माँ को सम्मान|
जय हो, बेटों - तुम्हारा बलिदान|
मातृभूमि की रक्षा हेतु,
मातृहृदय कितने ही रोये -
कितने ही बेटों को खोये|
फिर भी उनके आँखों पर,
आँसू के उन बूंदों पर,
झलके है, अजब सा अभिमान,
जय हो माँओं, तुम्हारा बलिदान|
सातों फेरों के कसम को तोड़,
नन्ही जानों को आँगन में छोड़,
दुश्मनों के ध्वंसक घमंड को तोड़,
जवानी को पलभर में लुटाकर,
साघांतिक इस खेल में सीना तानकर,
खड़े है वीर, अपना बढ़ाकर शान|
जय हो वीरों, तुम्हारा बलिदान|
खून भरी मांगें कितने ही,
बिखर गयी इन राहों में,
तनहाई की तमस में कितने,
खो चुके है इस मिट्टी में|
सकल विवशतावों से लड़कर,
बढ़ाई है उन वीरों की शान,
जय हो नारी, तुम्हारा बलिदान|
ज़िन्दगी की नुकीली पगतल पे,
चलते जाना नहीं आसान,
किसी मोड़ पर, तुम्हें भी जीवन के -
देना होगा अपना बलिदान!
Written in 2004
तुम
पर्छायियों से था नाता मेरा,
तनहायियों से थी बातें मेरा,
जाने थे वो किन गलियों से,
आना तेरा, जीवन में मेरा|
है खूबसूरत दोस्ती यह इतना,
आकाश में तारे हो जितना|
बुरी नज़रों से हरदम संभलना,
पचाएंगे नहीं, इसको जलता ज़माना|
आग के भवंडरों में, अकेली जब थी जकड़ी,
आसरा तो दूर, दुनिया ने क्या यह कलाई भी पकड़ी?
पथरीली सही, चलते रहो तुम बढती,
दोस्ती की ये लहर, जब तक सागर से नहीं मिलती|
कभी पत्थर की रहती थी मूरत,
कभी गुड़ियों से थी न मुझको फुर्सत|
आ गए हो तुम जो अब, बस -
खिला हमेशा है ये सूरत|
गम के बादल झाती थी जब,
आंसूएँ ही बस साथ में थी तब|
तुम जो हो मेरे पास में अब फिर,
गम के तूफ़ान का भी, क्या है मतलब?
नहीं सोचना मुझको इक तिनका,
शीशा हो तुम, मेरे इस मन का,
बेजान मुझमें जब से तू धडका,
जीवन तो है बस महका-महका!
Written on April 24, 2002
तनहायियों से थी बातें मेरा,
जाने थे वो किन गलियों से,
आना तेरा, जीवन में मेरा|
है खूबसूरत दोस्ती यह इतना,
आकाश में तारे हो जितना|
बुरी नज़रों से हरदम संभलना,
पचाएंगे नहीं, इसको जलता ज़माना|
आग के भवंडरों में, अकेली जब थी जकड़ी,
आसरा तो दूर, दुनिया ने क्या यह कलाई भी पकड़ी?
पथरीली सही, चलते रहो तुम बढती,
दोस्ती की ये लहर, जब तक सागर से नहीं मिलती|
कभी पत्थर की रहती थी मूरत,
कभी गुड़ियों से थी न मुझको फुर्सत|
आ गए हो तुम जो अब, बस -
खिला हमेशा है ये सूरत|
गम के बादल झाती थी जब,
आंसूएँ ही बस साथ में थी तब|
तुम जो हो मेरे पास में अब फिर,
गम के तूफ़ान का भी, क्या है मतलब?
नहीं सोचना मुझको इक तिनका,
शीशा हो तुम, मेरे इस मन का,
बेजान मुझमें जब से तू धडका,
जीवन तो है बस महका-महका!
Written on April 24, 2002
जीते है क्यों हम मौत की नींद में सो जाने?
आंसुओं का गाढ़ा समुन्दर खोदकर,
यादों का अनंद बस बादल छोड़कर,
चलते है लोग, अपनों को छोड़कर|
है विधाता की यह खेल पुरानी,
बुलाना किसी को भी अपनी मनमानी;
जीवन बनता है फिर एक बस अमर कहानी|
अजीब सा है, पूरा यह जीवन-चक्र,
जन्म लेते है लोग, मर फिर जाते है,
नहीं होता पूरी दुनिया में फिर, उनका कभी ज़िक्र|
दिल की खामोशियों में डुबकियां लूं तो,
सवाल एक बस उठता है बार-बार,
जीते है क्यों हम, मुश्किलें सब तानकर,
एक है सबका जब अंतिम-राह|
मौत का आवरण अपनों में बसाने,
ज़िन्दगी से हमेशा से चेहरा छुपाने,
अपनों के दिल में दर्द का दरिया बहाने,
उनके सपनों का दमक सब चूर- चूर कराने,
जीते है क्यों हम, मौत की नींद में सो जाने?
Written in 2000
यादों का अनंद बस बादल छोड़कर,
चलते है लोग, अपनों को छोड़कर|
है विधाता की यह खेल पुरानी,
बुलाना किसी को भी अपनी मनमानी;
जीवन बनता है फिर एक बस अमर कहानी|
अजीब सा है, पूरा यह जीवन-चक्र,
जन्म लेते है लोग, मर फिर जाते है,
नहीं होता पूरी दुनिया में फिर, उनका कभी ज़िक्र|
दिल की खामोशियों में डुबकियां लूं तो,
सवाल एक बस उठता है बार-बार,
जीते है क्यों हम, मुश्किलें सब तानकर,
एक है सबका जब अंतिम-राह|
मौत का आवरण अपनों में बसाने,
ज़िन्दगी से हमेशा से चेहरा छुपाने,
अपनों के दिल में दर्द का दरिया बहाने,
उनके सपनों का दमक सब चूर- चूर कराने,
जीते है क्यों हम, मौत की नींद में सो जाने?
Written in 2000
ज़िन्दगी की धार
जलता चिराग है ये,
मचलता फुहार है ये,
मंद-मंद बढती चलती,
ज़िन्दगी की धार है ये|
जल रहे इस आग में तो,
हर तरह की चाह है;
मुश्किलें सब तय करने का,
खामोश बस फ़रियाद है|
अश्रुधाराओं से सिंचित,
मुस्कुराहटों से शोभित,
मस्तियों से अलंकारित,
ज़िन्दगी की है दास्तान ये|
जाने कब, कैसे, कहाँ से,
फूट पड़ती है अंजान राहें,
घुमते है जिन गलियों से,
गल दिल की मूक खयालें|
ज़िन्दगी की इस धार में तो,
क्या नहीं है पिरोया गया,
नसीब का है खेल बाकि,
जिसपर हम है नचाया गया|
तूफ़ान उठाते पगतलों में,
बेड़ियाँ है डाले जाते,
वक़्त की गर मर्ज़ी नहीं तो,
कुछ नहीं हम कर पाते|
जलता चिराग है ये,
मचलता फुहार है ये,
मंद-मंद बढती चलती,
ज़िन्दगी की धार है ये|
Written in 1999
मचलता फुहार है ये,
मंद-मंद बढती चलती,
ज़िन्दगी की धार है ये|
जल रहे इस आग में तो,
हर तरह की चाह है;
मुश्किलें सब तय करने का,
खामोश बस फ़रियाद है|
अश्रुधाराओं से सिंचित,
मुस्कुराहटों से शोभित,
मस्तियों से अलंकारित,
ज़िन्दगी की है दास्तान ये|
जाने कब, कैसे, कहाँ से,
फूट पड़ती है अंजान राहें,
घुमते है जिन गलियों से,
गल दिल की मूक खयालें|
ज़िन्दगी की इस धार में तो,
क्या नहीं है पिरोया गया,
नसीब का है खेल बाकि,
जिसपर हम है नचाया गया|
तूफ़ान उठाते पगतलों में,
बेड़ियाँ है डाले जाते,
वक़्त की गर मर्ज़ी नहीं तो,
कुछ नहीं हम कर पाते|
जलता चिराग है ये,
मचलता फुहार है ये,
मंद-मंद बढती चलती,
ज़िन्दगी की धार है ये|
Written in 1999
बारिश का आलम
सातों आसमान को चीरती हुई,
स्वेत घनों को बेघती हुई,
सुन्दर-मनमोहक उस उपत्यका को
उद्योत कर दी दिवाकर ने|
पंछियों के मधुर आलापन से,
त्वरित निर्झरों के हिल्लोल से,
मधु में तरित अली के गुंजन से,
महक उठा समा, बहुवर्णी पुष्पों के महक से|
अचानक, यह प्रकंपन कैसी?
कैसे उठे यह सारा धूल?
खामोश, बदमस्त समा को द्वस्त करती,
कौन है जो बढ रहा- शीत्कार मचाता?
पलक मारते ही यह अंधकार कैसी?
जैसे रवि को कोई निगल गया हो -
रुई सी कोमल, स्वेत-घनों को,
जैसे जला कोई छार बना दी हो|
अन्धकारमय नभतल में,
हुडदंग मच गयी, क्षणभर में|
अन्तरंग में विद्वंस मचाते,
मानो छिड गया रण - धरा और नभ में|
वज्रप्रहार अम्बर ने की -
वसुंधरा भी चुप न रही,
आक्रोशित हो वह गरज उठी|
देख यह लीला, त्रिलोक कंपकंपा बैठी|
सांघातिक खेल यह सह न सकी -
पयोद, हाय! फूट-फूट रोने लगी,
रोषित धरा, अचानक शांत सी दीख पड़ी,
आँसुवों से जलद की, मानो दिल उसकी पिघल उठी|
देखकर चुप धरित्री को,
आकाश भी रंग बदलने लगी,
लौटने लगा वह अपने वाहिनी संग,
भरकर फिर से अवनी में हर्ष-मयूख|
नभचर वापस सुचारू हुए,
नीरद में वो खो जाने लगे,
कृतज्ञता से भरे आवाज़ में,
मधुर क्रन्दनाद अपने सुनाने लगे|
दीप्तवान हुए फिर से मही,
भानु के पुनरागमन से -
चमकने लगी हर एक तृण-फूल जगत के,
अश्रु-जलद बैठ उनपर मुस्कुराने लगे|
न जाने प्रकृति की कैसी यह लीला,
सोच-सोच, हैरान मैं हो जाऊं|
पूछती हुं सहस्रों बार नभ से - वह नीला,
गुथी फिर भी मैं सुलझ न पाऊँ|
Written on November 11, 1998
स्वेत घनों को बेघती हुई,
सुन्दर-मनमोहक उस उपत्यका को
उद्योत कर दी दिवाकर ने|
पंछियों के मधुर आलापन से,
त्वरित निर्झरों के हिल्लोल से,
मधु में तरित अली के गुंजन से,
महक उठा समा, बहुवर्णी पुष्पों के महक से|
अचानक, यह प्रकंपन कैसी?
कैसे उठे यह सारा धूल?
खामोश, बदमस्त समा को द्वस्त करती,
कौन है जो बढ रहा- शीत्कार मचाता?
पलक मारते ही यह अंधकार कैसी?
जैसे रवि को कोई निगल गया हो -
रुई सी कोमल, स्वेत-घनों को,
जैसे जला कोई छार बना दी हो|
अन्धकारमय नभतल में,
हुडदंग मच गयी, क्षणभर में|
अन्तरंग में विद्वंस मचाते,
मानो छिड गया रण - धरा और नभ में|
वज्रप्रहार अम्बर ने की -
वसुंधरा भी चुप न रही,
आक्रोशित हो वह गरज उठी|
देख यह लीला, त्रिलोक कंपकंपा बैठी|
सांघातिक खेल यह सह न सकी -
पयोद, हाय! फूट-फूट रोने लगी,
रोषित धरा, अचानक शांत सी दीख पड़ी,
आँसुवों से जलद की, मानो दिल उसकी पिघल उठी|
देखकर चुप धरित्री को,
आकाश भी रंग बदलने लगी,
लौटने लगा वह अपने वाहिनी संग,
भरकर फिर से अवनी में हर्ष-मयूख|
नभचर वापस सुचारू हुए,
नीरद में वो खो जाने लगे,
कृतज्ञता से भरे आवाज़ में,
मधुर क्रन्दनाद अपने सुनाने लगे|
दीप्तवान हुए फिर से मही,
भानु के पुनरागमन से -
चमकने लगी हर एक तृण-फूल जगत के,
अश्रु-जलद बैठ उनपर मुस्कुराने लगे|
न जाने प्रकृति की कैसी यह लीला,
सोच-सोच, हैरान मैं हो जाऊं|
पूछती हुं सहस्रों बार नभ से - वह नीला,
गुथी फिर भी मैं सुलझ न पाऊँ|
Written on November 11, 1998
चंचल दिल मेरा यूं बोले
धीरे-धीरे होले-होले,
मंद पवन मनवा को डोले|
शीतल छांव दे ज्योत्स्ना धीमे,
और पागल हिय चंचल हो बोले-
"तुम हो, तुम्ही हो,
जो दिल को हंसाये,
जी भर के रुलाये,
तन्हाई में ख़ुशी की लहर लेके जो आये"|
तप्त दिल की तम में टटोलते,
बितायी थी कितनी ही दिन मैं सिकुड़ते|
आशा की किरण तभी देखी थी उभरते,
तमपूर्ण नभ में इक तारा जैसे चमकते|
सपनों की गलियों में टहलती हुं जब मैं,
पीड़ा की खयालें कौंध जाती है दिल में|
देर से आये रवि, डूब न जाए कहीं,
भावना की भवसागर हिंडोले यही|
समय मानो मोम सी पिघली जा रही है,
चाहकर भी इसे रोक पाती नहीं मैं|
आशा करती हुं, दिल की यह सुमन,
कुम्हलाए न, सुरभित कर दे जीवन|
Written on October 29, 1997
मंद पवन मनवा को डोले|
शीतल छांव दे ज्योत्स्ना धीमे,
और पागल हिय चंचल हो बोले-
"तुम हो, तुम्ही हो,
जो दिल को हंसाये,
जी भर के रुलाये,
तन्हाई में ख़ुशी की लहर लेके जो आये"|
तप्त दिल की तम में टटोलते,
बितायी थी कितनी ही दिन मैं सिकुड़ते|
आशा की किरण तभी देखी थी उभरते,
तमपूर्ण नभ में इक तारा जैसे चमकते|
सपनों की गलियों में टहलती हुं जब मैं,
पीड़ा की खयालें कौंध जाती है दिल में|
देर से आये रवि, डूब न जाए कहीं,
भावना की भवसागर हिंडोले यही|
समय मानो मोम सी पिघली जा रही है,
चाहकर भी इसे रोक पाती नहीं मैं|
आशा करती हुं, दिल की यह सुमन,
कुम्हलाए न, सुरभित कर दे जीवन|
Written on October 29, 1997
दोस्ती
दोस्ती की दरिया में बहते-बहते,
न जाने कितने ही युग बीत गए,
क्या जानूं यह कब शुरू हुए,
लेकिन हाँ, नहीं यह मिटेंगे कभी|
हँसते-गाते, गिल्ली उड़ाते,
लडते-झगड़ते, गुस्सा दिखाते,
न जाने ऐसे कितने ही रंग-
दोस्ती का हमने उभारा संग-संग|
आंसुओं में एक दूजे के ढ़ाढस बंध-
विषमतावों में आपस का सहारा बन,
याद करूं मैं ऐसे कितने ही क्षण,
जब सँवारे थे हमने दोस्ती का आँगन|
दिल जब हमारे एक हो ही चुके है,
क्यों डरें हम उठते भवंडरों से-
एक है हम, बिझड़ेंगे नहीं कभी हम,
ख़बरदार जो कोई दिखाएँ, नज़र लगाने का दम|
यह दुनिया बनी है प्यार से- दिल के उमंग से,
आशियानों से, निर्मल-सच्ची भावनावों से,
खाएं आज कसम, इसे सुरभित करने का,
मरते दम तक सजाने का, इसे निभाने का|
न जाने कितने ही युग बीत गए,
क्या जानूं यह कब शुरू हुए,
लेकिन हाँ, नहीं यह मिटेंगे कभी|
हँसते-गाते, गिल्ली उड़ाते,
लडते-झगड़ते, गुस्सा दिखाते,
न जाने ऐसे कितने ही रंग-
दोस्ती का हमने उभारा संग-संग|
आंसुओं में एक दूजे के ढ़ाढस बंध-
विषमतावों में आपस का सहारा बन,
याद करूं मैं ऐसे कितने ही क्षण,
जब सँवारे थे हमने दोस्ती का आँगन|
दिल जब हमारे एक हो ही चुके है,
क्यों डरें हम उठते भवंडरों से-
एक है हम, बिझड़ेंगे नहीं कभी हम,
ख़बरदार जो कोई दिखाएँ, नज़र लगाने का दम|
यह दुनिया बनी है प्यार से- दिल के उमंग से,
आशियानों से, निर्मल-सच्ची भावनावों से,
खाएं आज कसम, इसे सुरभित करने का,
मरते दम तक सजाने का, इसे निभाने का|
December 13, 2009
परमात्मा से मौन प्रार्थना
हँसाते-हँसाते रुला ही लिया; तुमने
बिछाके पराग, कांटे चुभो ही दिया|
हाय! यह व्यथातिरेक असह्य बन पडती है,
बिना किसी कसूर के सज़ा लगती है|
सोचती थी, तुम मुझे पसंद करते हो,
मगर अब लगती है, तुम शायद मुझे जान ही न पाए हो|
माना हिय चंचल होती है,
समय की तरह परिवर्तनशील होती है,
लेकिन क्या वह तुम बिन रह सकती है?
मेरी उराहना बस यही है, कि तुम मुझे अब तक समझ ही न पाए,
मेरे सीने कि दीवार से तुम झांक भी न पाए|
तमावलम्ब कि बंधिष से, अपने मन को निकालो,
अब तो शक्ति दो, मुझे इस खायामाथ से छुडाओ|
देखा नहीं, यह भुवन मेरी हंसी उड़ा रहे है|
"निस्तरंग बन सहो यह पाषाणी क्रीडा" -
क्या यही मेरे लिए तुम्हारा आदेश है?
संभाला नहीं मुझे अगर तुमने अभी भी,
सोचना तक नहीं, मैं फिर जीवित रहूंगी|
अपने भी अगर हाथ थामे बिना जाए,
बता! क्या तब भी खामोश बैठ जाएँ?
नहीं! अब कभी भी सहूँगी नहीं मैं,
ज़माने कि ठोकरों से तंग आ चुकी हूँ|
याचना करती हूँ, पाँव तुम्हारे पडती हूँ|
कृपा कर मुझे मेरी खुशियाँ लौटा दो,
आंसुओं से सनी मेर्री झोली बदलवा दो|
बिछाके पराग, कांटे चुभो ही दिया|
हाय! यह व्यथातिरेक असह्य बन पडती है,
बिना किसी कसूर के सज़ा लगती है|
सोचती थी, तुम मुझे पसंद करते हो,
मगर अब लगती है, तुम शायद मुझे जान ही न पाए हो|
माना हिय चंचल होती है,
समय की तरह परिवर्तनशील होती है,
लेकिन क्या वह तुम बिन रह सकती है?
मेरी उराहना बस यही है, कि तुम मुझे अब तक समझ ही न पाए,
मेरे सीने कि दीवार से तुम झांक भी न पाए|
तमावलम्ब कि बंधिष से, अपने मन को निकालो,
अब तो शक्ति दो, मुझे इस खायामाथ से छुडाओ|
देखा नहीं, यह भुवन मेरी हंसी उड़ा रहे है|
"निस्तरंग बन सहो यह पाषाणी क्रीडा" -
क्या यही मेरे लिए तुम्हारा आदेश है?
संभाला नहीं मुझे अगर तुमने अभी भी,
सोचना तक नहीं, मैं फिर जीवित रहूंगी|
अपने भी अगर हाथ थामे बिना जाए,
बता! क्या तब भी खामोश बैठ जाएँ?
नहीं! अब कभी भी सहूँगी नहीं मैं,
ज़माने कि ठोकरों से तंग आ चुकी हूँ|
याचना करती हूँ, पाँव तुम्हारे पडती हूँ|
कृपा कर मुझे मेरी खुशियाँ लौटा दो,
आंसुओं से सनी मेर्री झोली बदलवा दो|
ज़िन्दगी का तराना
ज़िन्दगी न कोई मज़ाक है,
की जैसे चाहा खेल लिया|
लेकिन वोह ज़ंजीर भी नहीं,
की मौत का दर्जा दिया|
ज़िन्दगी तो एक खेल है,
कांटों-कलियों का वो मेल है,
हार भी है, जीत भी है,
आस निरास ही ज़िन्दगी है|
है सौभाग्य जिसमें, सिर्फ वही,
जो स्वत्व में बिलकुल सही,
जिसने नकारा कुमार्ग सभी,
यह व्योम-नग जीते वही|
इस ज़िन्दगी की दहकती ज्वार में,
डुबकियां लेते वीर है जो,
न मौत की खौंफ जिनमें,
अखिल विश्व में अजेय वो|
ज़िन्दगी की अंधेर नगरी में,
आलोक भर, हंसते चलो;
अंधादोम की जाल में,
जकड़े बिना बढते रहो|
सूनी वीरान गलियों में भी,
शोर तुम मचाता चल,
सकल-सुमंगल भाव हिय में भर,
ज़िन्दगी का तराना गा हर पल|
Written on March 28, 1998
की जैसे चाहा खेल लिया|
लेकिन वोह ज़ंजीर भी नहीं,
की मौत का दर्जा दिया|
ज़िन्दगी तो एक खेल है,
कांटों-कलियों का वो मेल है,
हार भी है, जीत भी है,
आस निरास ही ज़िन्दगी है|
है सौभाग्य जिसमें, सिर्फ वही,
जो स्वत्व में बिलकुल सही,
जिसने नकारा कुमार्ग सभी,
यह व्योम-नग जीते वही|
इस ज़िन्दगी की दहकती ज्वार में,
डुबकियां लेते वीर है जो,
न मौत की खौंफ जिनमें,
अखिल विश्व में अजेय वो|
ज़िन्दगी की अंधेर नगरी में,
आलोक भर, हंसते चलो;
अंधादोम की जाल में,
जकड़े बिना बढते रहो|
सूनी वीरान गलियों में भी,
शोर तुम मचाता चल,
सकल-सुमंगल भाव हिय में भर,
ज़िन्दगी का तराना गा हर पल|
Written on March 28, 1998
कांटों में आज तुम सुमन खिला
यहाँ वहां, सारा जहाँ ,
जैसे सूना रेगिस्थान हो|
कांटे ही कांटे है बिछे हुए,
इस नश्वर जीवन में, अहो|
फूलों की ओट सपनों में आए,
कांटों के संग डगमगाते हुए|
बहुवर्णी सुमन देखें दूर, हाय!
पथ पर कांटों की धूम लिए|
क्या सागर, क्या अम्बर,
अब तो कांटों से ही भरा पटीधरा|
हर मोड़ में जीवन के अब तो,
कांटे हे कांटे बिछे है, शतों-शतों|
जाग उठो हे सोने वालों,
खून की उनींदी नयनों को तुम -
धो डालो, सूर्यवंशी वालों,
प्रचंड तेज से कर दो उन कांटों को तुम गुम|
जागो- जगाओ, देर हो भी चूका,
भूल का अपनी तुम मोल चूका|
भूल का आज-अभी तुम मोल चूका,
जागो- जगाओ, देर हो भी चूका,
कांटों में आज तुम सुमन खिला|
Written on March 18, 1998
जैसे सूना रेगिस्थान हो|
कांटे ही कांटे है बिछे हुए,
इस नश्वर जीवन में, अहो|
फूलों की ओट सपनों में आए,
कांटों के संग डगमगाते हुए|
बहुवर्णी सुमन देखें दूर, हाय!
पथ पर कांटों की धूम लिए|
क्या सागर, क्या अम्बर,
अब तो कांटों से ही भरा पटीधरा|
हर मोड़ में जीवन के अब तो,
कांटे हे कांटे बिछे है, शतों-शतों|
जाग उठो हे सोने वालों,
खून की उनींदी नयनों को तुम -
धो डालो, सूर्यवंशी वालों,
प्रचंड तेज से कर दो उन कांटों को तुम गुम|
जागो- जगाओ, देर हो भी चूका,
भूल का अपनी तुम मोल चूका|
भूल का आज-अभी तुम मोल चूका,
जागो- जगाओ, देर हो भी चूका,
कांटों में आज तुम सुमन खिला|
Written on March 18, 1998
My Poetry Journey!
Having plunged into this exciting world way back in my schooldays,
it was Hindi - which is so dear a language to me that i began my voyage with...
With a gap of years wherein life kept me busy with setting up a base
and then a career, the thrills of my adventures with words and thoughts remained aloof...
With the latest turns taken, am back happily in my world of imaginations...
back with a new weapon to try my poetic hand in...English!!
it was Hindi - which is so dear a language to me that i began my voyage with...
With a gap of years wherein life kept me busy with setting up a base
and then a career, the thrills of my adventures with words and thoughts remained aloof...
With the latest turns taken, am back happily in my world of imaginations...
back with a new weapon to try my poetic hand in...English!!
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