जलता चिराग है ये,
मचलता फुहार है ये,
मंद-मंद बढती चलती,
ज़िन्दगी की धार है ये|
जल रहे इस आग में तो,
हर तरह की चाह है;
मुश्किलें सब तय करने का,
खामोश बस फ़रियाद है|
अश्रुधाराओं से सिंचित,
मुस्कुराहटों से शोभित,
मस्तियों से अलंकारित,
ज़िन्दगी की है दास्तान ये|
जाने कब, कैसे, कहाँ से,
फूट पड़ती है अंजान राहें,
घुमते है जिन गलियों से,
गल दिल की मूक खयालें|
ज़िन्दगी की इस धार में तो,
क्या नहीं है पिरोया गया,
नसीब का है खेल बाकि,
जिसपर हम है नचाया गया|
तूफ़ान उठाते पगतलों में,
बेड़ियाँ है डाले जाते,
वक़्त की गर मर्ज़ी नहीं तो,
कुछ नहीं हम कर पाते|
जलता चिराग है ये,
मचलता फुहार है ये,
मंद-मंद बढती चलती,
ज़िन्दगी की धार है ये|
Written in 1999
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