Art by Ambs

December 13, 2009

परमात्मा से मौन प्रार्थना

हँसाते-हँसाते रुला ही लिया; तुमने
बिछाके पराग, कांटे चुभो ही दिया|

हाय! यह व्यथातिरेक असह्य बन पडती है,
बिना किसी कसूर के सज़ा लगती है|

सोचती थी, तुम मुझे पसंद करते हो,
मगर अब लगती है, तुम शायद मुझे जान ही न पाए हो|

माना हिय चंचल होती है,
समय की तरह परिवर्तनशील होती है,
लेकिन क्या वह तुम बिन रह सकती है?

मेरी उराहना बस यही है, कि तुम मुझे अब तक समझ ही न पाए,
मेरे सीने कि दीवार से तुम झांक भी न पाए|

तमावलम्ब कि बंधिष से, अपने मन को निकालो,
अब तो शक्ति दो, मुझे इस खायामाथ से छुडाओ|

देखा नहीं, यह भुवन मेरी हंसी उड़ा रहे है|
"निस्तरंग बन सहो यह पाषाणी क्रीडा" -
क्या यही मेरे लिए तुम्हारा आदेश है?

संभाला नहीं मुझे अगर तुमने अभी भी,
सोचना तक नहीं, मैं फिर जीवित रहूंगी|

अपने भी अगर हाथ थामे बिना जाए,
बता! क्या तब भी खामोश बैठ जाएँ?

नहीं! अब कभी भी सहूँगी नहीं मैं,
ज़माने कि  ठोकरों से तंग आ चुकी हूँ|

याचना करती हूँ, पाँव तुम्हारे पडती हूँ|
कृपा कर मुझे मेरी खुशियाँ लौटा दो,
आंसुओं से सनी मेर्री झोली बदलवा दो|

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