Art by Ambs

December 13, 2009

कांटों में आज तुम सुमन खिला

यहाँ वहां, सारा जहाँ ,
जैसे सूना रेगिस्थान हो|
कांटे ही कांटे है बिछे हुए,
इस नश्वर जीवन में, अहो|

फूलों की ओट सपनों में आए,
कांटों के संग डगमगाते हुए|
बहुवर्णी सुमन देखें दूर, हाय!
पथ पर कांटों की धूम लिए|

क्या सागर, क्या अम्बर,
अब तो कांटों से ही भरा पटीधरा|
हर मोड़ में जीवन के अब तो,
कांटे हे कांटे बिछे है, शतों-शतों|

जाग उठो हे सोने वालों,
खून की उनींदी नयनों को तुम -
धो डालो, सूर्यवंशी वालों,
प्रचंड तेज से कर दो उन कांटों को तुम गुम|

जागो- जगाओ, देर हो भी चूका,
भूल का अपनी तुम मोल चूका|
भूल का आज-अभी तुम मोल चूका,
जागो- जगाओ, देर हो भी चूका,
कांटों में आज तुम सुमन खिला|

Written on March 18, 1998

No comments: