आंसुओं का गाढ़ा समुन्दर खोदकर,
यादों का अनंद बस बादल छोड़कर,
चलते है लोग, अपनों को छोड़कर|
है विधाता की यह खेल पुरानी,
बुलाना किसी को भी अपनी मनमानी;
जीवन बनता है फिर एक बस अमर कहानी|
अजीब सा है, पूरा यह जीवन-चक्र,
जन्म लेते है लोग, मर फिर जाते है,
नहीं होता पूरी दुनिया में फिर, उनका कभी ज़िक्र|
दिल की खामोशियों में डुबकियां लूं तो,
सवाल एक बस उठता है बार-बार,
जीते है क्यों हम, मुश्किलें सब तानकर,
एक है सबका जब अंतिम-राह|
मौत का आवरण अपनों में बसाने,
ज़िन्दगी से हमेशा से चेहरा छुपाने,
अपनों के दिल में दर्द का दरिया बहाने,
उनके सपनों का दमक सब चूर- चूर कराने,
जीते है क्यों हम, मौत की नींद में सो जाने?
Written in 2000
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