ज़िन्दगी न कोई मज़ाक है,
की जैसे चाहा खेल लिया|
लेकिन वोह ज़ंजीर भी नहीं,
की मौत का दर्जा दिया|
ज़िन्दगी तो एक खेल है,
कांटों-कलियों का वो मेल है,
हार भी है, जीत भी है,
आस निरास ही ज़िन्दगी है|
है सौभाग्य जिसमें, सिर्फ वही,
जो स्वत्व में बिलकुल सही,
जिसने नकारा कुमार्ग सभी,
यह व्योम-नग जीते वही|
इस ज़िन्दगी की दहकती ज्वार में,
डुबकियां लेते वीर है जो,
न मौत की खौंफ जिनमें,
अखिल विश्व में अजेय वो|
ज़िन्दगी की अंधेर नगरी में,
आलोक भर, हंसते चलो;
अंधादोम की जाल में,
जकड़े बिना बढते रहो|
सूनी वीरान गलियों में भी,
शोर तुम मचाता चल,
सकल-सुमंगल भाव हिय में भर,
ज़िन्दगी का तराना गा हर पल|
Written on March 28, 1998
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