धीरे-धीरे होले-होले,
मंद पवन मनवा को डोले|
शीतल छांव दे ज्योत्स्ना धीमे,
और पागल हिय चंचल हो बोले-
"तुम हो, तुम्ही हो,
जो दिल को हंसाये,
जी भर के रुलाये,
तन्हाई में ख़ुशी की लहर लेके जो आये"|
तप्त दिल की तम में टटोलते,
बितायी थी कितनी ही दिन मैं सिकुड़ते|
आशा की किरण तभी देखी थी उभरते,
तमपूर्ण नभ में इक तारा जैसे चमकते|
सपनों की गलियों में टहलती हुं जब मैं,
पीड़ा की खयालें कौंध जाती है दिल में|
देर से आये रवि, डूब न जाए कहीं,
भावना की भवसागर हिंडोले यही|
समय मानो मोम सी पिघली जा रही है,
चाहकर भी इसे रोक पाती नहीं मैं|
आशा करती हुं, दिल की यह सुमन,
कुम्हलाए न, सुरभित कर दे जीवन|
Written on October 29, 1997
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