मातृभूमि की छाती पर,
वीरों के इस धरती पर,
न जाने कितनी ही जान -
दे चुके है, बलिदान|
काँटों भरी राह से चलकर,
कदम-कदम पर जान लुटाकर,
भारतमां को मुक्त कराने,
न जाने कितने ही बेटों ने,
फांसी को फूलों का हार मान,
दिया धरती माँ को सम्मान|
जय हो, बेटों - तुम्हारा बलिदान|
मातृभूमि की रक्षा हेतु,
मातृहृदय कितने ही रोये -
कितने ही बेटों को खोये|
फिर भी उनके आँखों पर,
आँसू के उन बूंदों पर,
झलके है, अजब सा अभिमान,
जय हो माँओं, तुम्हारा बलिदान|
सातों फेरों के कसम को तोड़,
नन्ही जानों को आँगन में छोड़,
दुश्मनों के ध्वंसक घमंड को तोड़,
जवानी को पलभर में लुटाकर,
साघांतिक इस खेल में सीना तानकर,
खड़े है वीर, अपना बढ़ाकर शान|
जय हो वीरों, तुम्हारा बलिदान|
खून भरी मांगें कितने ही,
बिखर गयी इन राहों में,
तनहाई की तमस में कितने,
खो चुके है इस मिट्टी में|
सकल विवशतावों से लड़कर,
बढ़ाई है उन वीरों की शान,
जय हो नारी, तुम्हारा बलिदान|
ज़िन्दगी की नुकीली पगतल पे,
चलते जाना नहीं आसान,
किसी मोड़ पर, तुम्हें भी जीवन के -
देना होगा अपना बलिदान!
Written in 2004
1 comment:
This poem was written from college, in an "On the spot poetry writing competition". The poem title was given on the spot and an hour to go for it!
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